बिहार को विभाजित कर झारखंड नाम से एक नए राज्य का निर्माण किया। नए राज्य
सृजन के बाद इसके पहले राज्यपाल और मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य क्रमशः
प्रभात कुमार और बाबूलाल मरांडी को मिला। इसके निर्माण में तत्कालीन प्रधान
अटल बिहारी वाजपेयी का अहम योगदान रहा।
झारखंड राज्य अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा है। 21 साल पहले 15 नवंबर, 2000 को झारखंड राज्य अस्तित्व में आया था। बिहार को विभाजित कर झारखंड नाम से एक नए राज्य का निर्माण किया गया। इसके निर्माण में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अहम योगदान रहा। नए राज्य सृजन के बाद इसके पहले राज्यपाल और मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य क्रमशः प्रभात कुमार और बाबूलाल मरांडी को मिला। अलग राज्य बनने के बाद हर साल 15 नवंबर को धूमधाम से स्थापना दिवस मनाया जाता है।
झारखंड पार्टी के गठन के बाद अलग राज्य की उठी मांग
झारखंड क्षेत्र के आदिवासियों की अपनी अलग पहचान और संस्कृति रही है। राजनैतिक स्तर पर 1938 में जयपाल सिंह के नेतृत्व में झारखंड पार्टी का गठन हुआ। इसके बाद अलग राज्य की मांग ने जोर पकड़ा। पहले आमचुनाव में सभी आदिवासी जिलों में झारखंड पार्टी की दमदार उपस्थिति रही। जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की भी मांग हुई जिसमें तत्कालीन बिहार के अलावा ओडिसा और पश्चिम बंगाल का भी क्षेत्र शामिल था। आयोग ने इस क्षेत्र में कोई एक आम भाषा न होने के कारण झारखंड के दावे को खारिज कर दिया। 1950 के दशक में झारखंड पार्टी की बिहार में सबसे बड़ी विपक्षी दल की भूमिका रही। लेकिन बाद में इसकी शक्ति क्षीण होने लगी। झारखंड आंदोलन को सबसे बड़ा आघात 1963 में पहुंचा जब जयपाल सिंह ने झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया। इसके बाद छोटानागपुर क्षेत्र में कई छोटे-छोटे झारखंड नामधारी दलों का उदय हुआ। 1972 में धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की गई। आज झारखंड की सत्ता झामुमो के हाथ में है।
शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन को दी गति
झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने 60 और 70 के दशक के बीच धनबाद के टुंडी इलाके में जमींदारी और सूदखोरी प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। उन्होंने 1969 में सोनत संथाल समाज नाम के संगठन खड़ा किया। बाद में 1972 में सोरेन ने विनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। इसके बाद सोरेन ने अलग झारखंड राज्य आंदोलन को धार दिया। 1991 के लोकसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने लोकसभा की पांच सीटों पर जीत दर्ज की। केंद्र में पीवी नरसिंहराव की सरकार को समर्थन दिया। इसके एवज में केंद्र सरकार की पहल पर बिहार सरकार ने अगस्त, 1995 में झारखंड स्वायत्तशासी परिषद की स्थापना की। शिबू सोरेन इसके अध्यक्ष बनाए गए। इसमें 180 सदस्य थे। शिबू सोरेन ने केंद्र में नरसिंह राव और बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार को अलग झारखंड राज्य के लिए समर्थन दिया था। लेकिन दोनों ने शिबू सोरेन को निराश किया। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहार विधानसभा में अलग राज्य की मांग को खारिज करते हुए कह डाला-उनकी लाश पर ही अलग झारखंड राज्य बनेगा। इसके बाद शिबू सोरेन ने भाजपा के साथ हाथ मिलाया।
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